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BHOPAL. ऐसे एक नहीं बहुत से सवाल हैं जो कांग्रेस की दूसरी लिस्ट को देखकर सियासी गलियारों में उठ रहे हैं। बीजेपी की तरह कांग्रेस ने भी टिकट देने से पहले कई सर्वे किए। कमलनाथ के नाम से भी कहा गया कि वो पर्सनल लेवल पर सर्वे करवा रहे हैं, लेकिन लिस्ट जारी होने के बाद कहानी ढाक के तीन पात वाली ही रह गई। कई सीटों पर वही पुराने चेहरे रिपीट किए गए हैं। जिन्हें बिना किसी सर्वे के ही टिकट दिया जा सकता था। परिवारवाद तो जमकर हुआ ही है कांग्रेस ने अपने फैसले बदलकर ये साबित कर दिया है कि वो खुद सर्वे के नतीजों से आश्वस्त नहीं हैं। पहली लिस्ट के बाद कांग्रेस फिर भी दमदार नजर आ रही थी, लेकिन बहुत मंथन के बाद जारी की गई दूसरी लिस्ट के बाद कांग्रेस खुद ही मैदान छोड़ती नजर आ रही है।
कांग्रेस की लिस्ट में सरप्राइज करने वाले एलिमेंट नदारद
टिकट वितरण से पहले कांग्रेस और बीजेपी दोनों की ही ओर से ये दावे होते रहे कि सही प्रत्याशी चयन के लिए खूब सर्वे हो रहे हैं। दोनों ही दल तीन-तीन सर्वे करने का दम भर रहा है। इन सर्वे के बाद जब बीजेपी की लिस्ट जारी होना शुरू हुई तब नामों ने हैरान करना भी शुरू कर दिया। केंद्रीय मंत्री, सांसद और दिग्गज नेताओं को चुनावी रण में उतारकर बीजेपी ने साफ कर दिया कि वो किसी सीट पर रिस्क लेने के मूड में नहीं है। इससे उलट कांग्रेस की लिस्ट जारी हुई तो सरप्राइज करने वाले एलिमेंट ही नदारद थे। सिवाय कमलनाथ के कोई चौंकाने वाला चेहरा मैदान में नजर नहीं आया। तीन सर्वे के बाद खूब सोच समझने की बात तो छोड़िए कांग्रेस अपनी पुरानी परंपरा से जरा भी दाएं बाएं गई नजर नहीं आई। दूसरी लिस्ट में तो पूरी तरह से कांग्रेस की परिपाटी पर चलते हुए टिकट दिए गए हैं। उसमें भी जीत से ज्यादा कवायद क्षत्रपों को साधने में की गई नजर आई।
लिस्ट में मंथन कम एडजस्टमेंट ज्यादा नजर आया
ऐसा नहीं है कांग्रेस ने अपनी लिस्ट से बिलकुल नहीं चौंकाया हो। कांग्रेस की लिस्ट देख हैरान वो लोग हुए हैं जिन्हें कुछ बड़े बदलाव और सख्त फैसलों की उम्मीद थी, लेकिन उनकी उम्मीद बुरी तरह टूट चुकी है। सिर्फ एक सीट को छोड़ दें को कांग्रेस ने पूरे प्रदेश पर अपने कैंडिडेट जाहिर कर दिए हैं। जिसमें सर्वे और चिंतन मंथन कम बल्कि एडजस्टमेंट ज्यादा नजर आ रहा है। कुछ सीटों पर कमलनाथ के समर्थकों को टिकट मिला है तो छिंदवाड़ा सीट पूरी तरह से कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ के फेवर से तैयार हुई है। दिग्विजय सिंह पूरी लिस्ट में सबसे ज्यादा भारी पड़े हैं। वैसे दिग्विजय सिंह प्रदेश में अपने लेवल पर वन टू वन सर्वे कर रहे हैं। तो, क्या इसका ये मतलब है कि दिग्विजय सिंह के समर्थक और सगे संबंधी ही चुनावी नैया पार लगा सकते हैं। जिन्हें सबसे ज्यादा टिकट दिए गए हैं।
दलबदलुओं पर भी रही कांग्रेस की मेहरबानी
229 सीटों में से अधिकांश पर कांग्रेस ने उन्हीं चेहरों को रिपीट किया है जो वो पहले भी करती आई है। जहां कहीं चेहरे बदलने की कोशिश की थी वहां भी दबाव में आकर पुराने नामों को टिकट देने पर पार्टी मजबूर दिखी है। जिसमें से एक सीट बीजेपी के कद्दावर नेता नरोत्तम मिश्रा की सीट दतिया ही है। जहां अवधेश नायक की जगह वापस राजेंद्र भारती को टिकट दे दिया गया है। पिछोर में भी शैलेंद्र सिंह की जगह अरविंद सिंह लोधी को टिकट देकर मुकाबला लोधी बनाम लोधी कर दिया गया है। इससे दूसरी जाति के मतदाता बीजेपी का ही रुख कर सकते हैं। गोटेगांव में एनपी प्रजापति के समर्थकों की नाराजगी रंग लाई यहां शेखर चौधरी का टिकट बदलकर एनपी प्रजापति को ही टिकट दे दिया गया है। दलबदलुओं पर भी कांग्रेस पूरी तरह मेहरबान रही।
अब कांग्रेस के सामने विरोध से निपटने की चुनौती है
होशंगाबाद से गिरजाशंकर शर्मा, सिमरिया से अभय मिश्रा, खातेगांव से दीपक जोशी, निवाड़ी से अमित राय, बदनावर से भंवर सिंह शेखावत और जावद से समंदर पटेल को टिकट दे दिया गया है। इन नामों के बाद भड़का विरोध सोशल मीडिया पर साफ नजर आ रहा है। जिस ट्वीट में कांग्रेस ने लिस्ट जारी की है उसका थ्रेड फॉलो करेंगे तो ये अंदाजा लगाना आसान होगा कि किन सीटों पर नाराजगी पनप रही है। दीपक जोशी के टिकट का विरोध भी शुरू हो चुका है। मुरैना से टिकट कटने के बाद विधायक राकेश मावई भी का भी विरोध जाहिर करता वीडियो वायरल हो रहा है। जावरा सीट पर देर रात ही विद्रोह शुरू हो गया आलोट में भी मनोज चावला के नाम का विरोध है। जावरा में तो कार्यकर्ताओं ने ये ऐलान भी कर दिया कि ये सीट अपने हाथ से कमलनाथ ने बीजेपी को सौंप दी है। अब कांग्रेस के सामने ऐसे विरोध से निपटने की बड़ी चुनौती सामने है।
18 टिकट दिग्विजय सिंह के करीबियों के खाते में
कांग्रेस की दोनों ही लिस्ट में परिवारवाद तो है साथ ही दिग्विजय सिंह का दम खम भी साफ नजर आ रहा है। उनके भाई, बेटे, रिश्ते की समधन को टिकट तो मिला ही है दूसरी लिस्ट में पूरे 18 टिकट ऐसे हैं जो दिग्विजय सिंह के करीबियों के खाते में गए हैं। इसके अलावा भोपाल पश्चिम की सीट पर भी दिग्विजय सिंह अपने खास पीसी शर्मा को टिकट दिलाने में कामयाब रहे। टिकट वितरण में सिंह तो किंग बने ही नकुलनाथ की सहमति से छिंदवाड़ा जिले की सीटों पर नाम फाइनल हुए हैं। कमलनाथ के सर्वे पर दिग्विजय सिंह भारी पड़ते साफ दिख रहे हैं। तो, क्या दिग्विजय सिंह की बैठकों को कमलनाथ के सर्वे से ज्यादा ठोस माना गया है।
हालांकि, कुछ सीटों पर जरूर कांग्रेस ने मुकाबले को रोचक बनाने की कोशिश की है...
- देवतालाब की सीट पर बीजेपी के गिरीश गौतम के सामने उनके भतीजे पद्मेश गौतम को प्रत्याशी बनाया गया है।
- पद्मेश गौतम गिरीश गौतम के बेटे और अपने चचेरे भाई राहुल गौतम को जिला पंचायत चुनाव में मात दे चुके हैं।
- सागर की सीट पर भी मुकाबला रोचक है यहां लगातार जीत रहे शैलेंद्र जैन के सामने कांग्रेस ने उनके छोटा भाई सुनील जैन की पत्नी निधि जैन को टिकट दिया है। यहां मुकाबला जेठ बनाम बहू का होगा।
- नर्मदापुरम में बीजेपी के सिटिंग एमएलए सीताशरण शर्मा की सीट पर कांग्रेस ने उनके सगे भाई गिरिजाशंकर शर्मा को टिकट दिया है। गिरिजाशंकर भी दो बार के विधायक हैं।
- भिंड में भी कांग्रेस ने चौधरी राकेश चतुर्वेदी को टिकट देकर चौंकाया है। यहां से साल 2011 में चतुर्वेदी की वजह से ही कांग्रेस का अविश्वास प्रस्ताव गिर गया था। उसके बावजूद कांग्रेस ने उन पर भरोसा किया है।
- कांग्रेस की इस लिस्ट को देखकर ही बीजेपी ने यह कहने में देर नहीं की है कि वो जीत के और करीब पहुंच गई है। बीजेपी का ये भी आरोप है कि कांग्रेस टिकट वितरण में करीबियों और सगे संबंधियों को टिकट देने की होड़ साफ नजर आ रही है।
लिस्ट जारी करने के बाद कांग्रेस फिर सोशल मीडिया पर यही दावे कर रही है कि जीत सुनिश्चित है, लेकिन लिस्ट कुछ और ही कहानी कह रही है।
बीजेपी से आए असंतुष्टों को एडजस्ट करने की कोशिश
आमला सीट के अलावा अब कांग्रेस हर सीट पर नाम डिक्लेयर कर अपनी रणनीति साफ कर चुकी है। जिसमें पुराने चेहरों पर ही बड़ा दांव नजर आता है। बीजेपी ने जिन सीटों पर सांसदों की ताकत झौंक दी है उन सीटों में से अधिकांश पर भी कांग्रेस पुराने चेहरों के ही भरोसे है। कुछ सीटों पर बीजेपी से आए दल बदलुओं पर दांव लगाया है। दोनों ही लिस्ट में कांग्रेस ने अपने दिग्गज नेताओं के चेहते और रिश्तेदारों के अलावा बीजेपी से आए असंतुष्टों को एडजस्ट करने की कोशिश की है, लेकिन ये कोशिश वाकई कामयाब होगी या नहीं ये फिलहाल कहना मुश्किल है।